दस सहस्र जप करै जो कोई। सक काज तेहि कर सिधि होई।। कवितालहरी तस्य भवेद् गंगाप्रवाहवत्॥ ३४ ॥ एहि विधि ध्यान हृदय में राखै। वेद पुराण संत अस भाखै।। शशि ललाट कुण्डल छवि न्यारी। असतुति करहिं देव नर-नारी।। आसन पीतवर्ण महारानी। भक्तन की तुम हो वरदानी।। सम्बोधनपदं पातु नेत्रे श्री https://www.instagram.com/tantramantraaurvigyaan/reel/DA6ACEaONEJ/
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